रावण हंसकर पूछ रहा ये
दुनिया तुम बतलाओ ना
राम ने जब से मुझको मारा
तुम भी मुझे जलाते हो
अपने अंदर झाको जरा अपने अंदर झांको
क्या तुम में बुराई नहीं
मैंने कुल के उद्धार हेतु
सीता को उठाया था
फिर भी मैंने नारे के अस्तित्व को नहीं छुआ
मर्यादा में रहकर मैंने उनको रखा था
किंतु आज नजर उठाओ
इतने रावण पाओगे
मेरे नाम के भी लायक नहीं
इतने कलंकी पाओगे
किसी किसी के मन में तो
बस छल का ही साया है
कपट द्वेष और अहंकार की चारों ओर माया है
स्वार्थ से भरा हुआ जब मनुज हुआ है
तो मुझको जलाने से क्या फायदा होगा
जलाना है तो बुराई जलाओ
जो नष्ट हुई तो दशहरा मनाओ
वरना भ्रम में जीने का कुछ
सारांश नजर ना होता मुझको
रावण हंसकर पूछ रहा ये,
दुनिया तुम बतलाओ ना||