Sunday, 25 October 2020

रावण हंसकर पूछ रहा


 रावण हंसकर पूछ रहा ये 

दुनिया तुम बतलाओ ना 

राम ने जब से मुझको मारा 

तुम भी मुझे जलाते हो 

अपने अंदर झाको जरा अपने अंदर झांको 

क्या तुम में बुराई नहीं 

मैंने कुल के उद्धार हेतु

सीता को उठाया था

 फिर भी मैंने नारे के अस्तित्व को नहीं छुआ 

मर्यादा में रहकर मैंने उनको रखा था

 किंतु आज नजर उठाओ 

इतने रावण पाओगे 

मेरे नाम के भी लायक नहीं 

इतने कलंकी पाओगे 

किसी किसी के मन में तो

बस छल का ही साया है 

कपट द्वेष और अहंकार की चारों ओर माया है 

स्वार्थ से भरा हुआ जब मनुज हुआ है 

तो मुझको जलाने से क्या फायदा होगा 

जलाना है तो  बुराई जलाओ

 जो नष्ट हुई तो  दशहरा मनाओ

वरना भ्रम में जीने का कुछ 

सारांश नजर ना होता मुझको

रावण हंसकर पूछ रहा ये,

 दुनिया तुम बतलाओ ना||


Thursday, 1 October 2020

बलात्कारियों को मिटा दो

सिसक कर रोज रोता है, सुबह अखबार देश में

दरिंदे भेडियो से है ,भरा बाजार देश में

खबर सुन रेप का ऐसा ,दहल जाता हमारा दिल

न जाने चूक करती है, कहां सरकार देश में

मनुजता छोड़  पशुता की ,रफ्तार बड़ी  देश में

जरा सोचो यहां कैसे, रहेगी बेटियां सबकी

हदे हैवानियत की जब,करे नर पार देश में

रही ना  शेष  इनमें कुछ,इंसानियत बाकी

तो क्यों ना सरेआम इनको जला दे देश में

अगर इस तरह सबक मिला ना इनको

         तो बढ़ते रहेंगे पाप देश में


Tuesday, 15 September 2020

कन्यादान


कई जन्म के पुण्य हमारे, जब संचित हो जाते हैं।

तब पुत्री के रूप में कोई, कन्या को हम पाते हैं।।

सहज नही होती है कन्या, करुणा की अवतारी है।

शक्ति स्वरूपा प्रेम प्रतीता, वो तो तारणहारी है।।

इस हेतु जरूरी है कन्या का, मान और सम्मान करें।

भाग्य और सौभाग्य हमारा, इसपर हम अभिमान करें।।

नेह स्नेह से पालन पोषण, उसका लाड़ दुलार करो।

खुद से ज्यादा तनया को ही, जी भरकर तुम प्यार करो।।

किन्तु कहो क्या शुभ की बेला, सदा सनातन होती है।

कालचक्र में कभी कभी तो, बेबस आँखें रोती हैं।।

यूँ ही लाडो आखिर इक दिन, अपने घर तो जाएगी।

और वहाँ भी नेह स्नेह का, डंका खूब बजाएगी।

आओ उसके विदा पर्व का, अंतस से संज्ञान करें।

*तीन लोक में सबसे दुर्लभ, आओ कन्यादान करें।।


Friday, 4 September 2020

डॉक्टर सर्वपल्लीराधाकृष्णन

 

5 सितम्बर ंशिक्षक दिवस ंआज पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्मदिन जिन्होंने शिक्षा के महत्व को प्रतिपादन किया ,यह शुभ दिन हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । 

 संसार के महान दार्शनिक भारत के सर्वोच्च पद पर स्थित राष्ट्रपति और संसार के महान विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक के रूप में विख्यात हैं।            

        उन्होंने इन तीनों रूपों में अपनी ज्ञान गरिमा और आदर्श जीवनचर्या का परिचय दिया। जीवन तथा जगत को सच्चाई से अवगत करवाया , और ये बता़या निर्भीक और सत्यवादी होता है ज्ञान ।

दर्शनशास्त्र इसी सच्चाई का अन्वेषण करता है। डॉ, राधाकृष्णन ज्ञान की इसी उच्चतम स्थिति में आधिष्ठित थे। भारत सरकार ने उन्हें रूस में भारत का दूत बनाकर भेजा था उनकी भेंट प्रशासक स्टालिन से तय की गई थी । जहाज के डेक पर निश्चित की गई ।

स्टालिन ने राधा-कृष्ण से पुछा आपको हमारा देश कैसा लगा डॉक्टर डॉ राधाकृष्णन ने कहा यहां तानाशाही है और जहां तानाशाही है वहां व्यक्ति की पूजा  होती है । आपका देश तथा उसकी जनता आजाद  नहीं कही जा सकती । स्टालिन के तेवर चढ गए। मुलाकात में खत्म हो गई। डॉक्टर राधाकृष्णन विदा हुए। उन्हें अपने स्तर के परिणाम के प्रति का प्रिया का अनुमान था सेक्रेटरी ने स्टालिन से पूछा, इस व्यक्ति से क्या और कैसा व्यवहार किया जाए ? स्टालिन ने  कहा जाने दो यह राजनीतिक नहीं है,, दार्शनिक है ,स्टालिन राजनीति को दर्शनिक का फर्क जानता था। वह जानता था राजनीतिक कभी सच नहीं बोलता ,और दार्शनिक कभी झूठ नहीं बोलता ।

उनका जन्म दिवस शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका तात्पर्य है कि शिक्षक दार्शनिक राष्ट्रपति से बढ़कर होता है । हर प्रकार से शिक्षक का पद संसार में सर्वाधिक ऊंचा माना जाता है। इसलिए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन के शिक्षकों होने की विशेषता से यह सम्मान प्राप्त कर गया।शिक्षक में राष्ट्रपति की महानता और दार्शनिक की सच्चाई और ज्ञान को समाहित होता है ।मनुष्य मात्र के कल्याण की कामना होती है। गुरु को ईश्वर से ऊंचा स्थान दिया जाता है कबीर  कहते हैं ,,,

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय भला हुआ गुरु आपने गुरु आपने जीण गोविंद दियो बताए,,


Tuesday, 1 September 2020

दिल में राम लिखा


लिखे राम  पे  ग्रंथ  किसी ने  

हमनें   दिल   में  राम लिखा  । 

सबने  उनके  काम को पूजा  

हमनें    बस निष्काम लिखा  ।।  

........................................   

कहे किसी नें  मानव  उनको  


लगे   किसी  को  अवतारी   ।  

सुलगे  लाखों प्रश्न  राम  को  

जब भी  पूर्ण   विराम लिखा  ।। 

......................................  

जगपालक जन मन के नायक 

जननी  ,जनक    दुलारे    को  । 

राजा   माना   बहुतेरों      नें  ,  

हम    नें   बस  आवाम लिखा ।। 

......................................  

पावन सरयू   सलिला   जैसी  

श्यामल   जिनकी  काया  थी । 

उनके   श्री   चरणों को छूकर  

हमनें    सिर्फ    प्रणाम लिखा ।।  

.....................................  

दुराचार  के    संहारक    थे  , 

सदाचार   के    पोषक    जो  ।।  

ऐसे   पालनहार   प्रभू    को  , 

हमनें    भी     सुखधाम लिखा ।।  🙏

.....................................  

जिनके  छूने   से  पत्थर   में 

प्राणों     का     संचार  हुआ  । 

हमनें उस पग  के रज कण को ,

साधक    का    परिणाम लिखा ।।   

Thursday, 27 August 2020

सुखी होने के उपाय

पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है:- ''प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था, और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।*

*भगवान बोले:- वो कैसे ...?*

हनुमान जी बोले:- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।*

*कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।*उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।*सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।

*शिक्षा :- 🔥*

*हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।*

*उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है, पर हम भरोसा नहीं करते।*

*बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है।*दूसरी बात प्रभु...! 🔥

*बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ।*मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।*

*🔥शिक्षा :- 🔥*

*हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी का बोझ को हम ही उठाये हुए है।*

*जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।

जय श्री राम🙏*

Monday, 17 August 2020

पिता क्यो पिछे

 *फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*


माँ,  नौ महीने पालती है ,

पिता, 25 साल् पालता है 

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है।


माँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम  करती है ,

पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है 

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है‌।


माँ ! जो चाहते हो वो बनाती है ,

पिता ! जो चाहते हो वो ला के देता है ,

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है।


माँ ! को याद करते हो जब चोट लगती है ,

पिता ! को याद करते हो जब ज़रुरत पड़ती है, 

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है।


माँ, की ओर बच्चो की अलमारी नये कपड़े से भरी है ,

पिता, कई सालो तक पुराने कपड़े चलाता है ,

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है।


पिता, अपनी ज़रुरते टाल कर सबकी ज़रुरते समय से पुरी करता है,

किसी को उनकी ज़रुरते टालने को नहीं कहता ,

फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है।



Thursday, 16 July 2020

रंगमंच

जीवन के रंगमंच के सब भांति भांति किरदार
नहीं किसी का आपस में मिलता-जुलता अंदाज
                         सब सोचे मैं ही हूं दुनिया का दावेदार
                     भूल जाते परम सत्य की ये तो रैन बसेरा
क्या जाने कब उड़ जाए अच्छा रोल निभाए
छाप अमिट छप जाए जंग में कुछ ऐसा कर जाए
          सत्य, अहिंसा,पुण्य की बातें भी सुनने मिल जाए
           इन राहों पर चलना कहां अब सब को भा जाए
लोभ,मोह,लालच में गिरा मनुज कहां उठ पाए
निन्यानवे के फेर में दिन रात वो डूबा जाए
             इस के खातिर ना जाने कितने कुकर्म कर जाए
               किन्तु सत्य रंगमंच का याद वो ना रख पाए
इस धरा का इस धरा पर ही रह जाए
इसलिए रंगमंच पर अच्छे कर्म कर जाए।
     

Monday, 22 June 2020

संस्कार

आज बड़े दिन बाद फिर मैं अंजली से मिली ।पर अब वो पहले से बहुत बदल गईं थी।हमने पूरा दिन साथ बिताया शादी औऱ नोकरी फिर घर से बाहर कभी फालतू ना आने जाने की उसकी ओर मेरी आदत से बरसों बाद हम एक ही शहर में रहते हुए आज सब्जी खरीदते हुवे आखिर मिल ही गये।वही कहीं साइड में खड़े खडे जो बातें शुरू हुई।पूरा 1 घण्टा निकल गया।तभी दोनो को अपने घर जाने की जल्दी से निकल गए लेकिन इस बीच उसे जो बातें हुई वो जीवन के सभी संस्कारों को याद दिला गयी जो आज बहुत कम दिखने को मिलते है।अंजली से पूछने पर पता चला कि उसकी शादी भले ही पैसे वाले ओर सरकारी रेलवे में नोकरी करने वाले से हुई हो पर जीवन के सही संघर्ष तो शादी के बाद ही शुरू हुवे ।ओर ये सब भी पहले भी मिले पर उसने कभी नही बताया उसके पड़ोसी हमारे मिलने वाले थे उन्होंने बताया।तब जाकर मैने उसे कहा मुझे सब पता है ।कि वो रोज पी कर आता है।और उसकी सारी सैलरी भी वही खत्म हो जाती है।और तुम घर घर काम कर के घर खर्च भी चलाती हो और ससुराल में सब की सेवा भी खूब करती हो।तुम उसको छोड़ क्यो नहीं देती?मेरा उससे ये कहना हुवा ओर उसने तपाक से मुझे जवाब दिया देखो जीवन मे अगर दुःख लिखा है और वो हमारे कर्मों से ही मिलता है ।तो इनको छोड़ने पर दूसरे के साथ भी मिलेगे।क्या तुमने अपने माता पिता को ये सब बताया ।तुम तो उनकी एकलौती बेटी और लाडली हो वो तुम्हे अपने घर रख लेंगे।इस पर भी अंजली ने मुझे बिना सोचे जल्दी ही जवाब दे दिया कि जब मै छोटी थी तो माँ रामायण का पाठ सुनाती थी तब जनक जी की बेटी सीता जी और राम को वनवास हो जाता है।तब मैं माँ से कहती थी कि वनवास तो सिर्फ राम को हुवा सीता जी क्यों उनके साथ दुखी होने वन में जाती है तब माँ कहती थी कि सच्ची पत्नी वही है जो पति का हर परिस्थिति में साथ निभाये।तो तुम ही बताओ में कैसे अपने पति को छोड़ दु।फिर जब मैं अपनी माँ से कहती कि सीता जी के पिता भी तो राजा है और उन्होंने अपनी पुत्री को कितने प्यार से पाला ओर बहुत कुछ दिया तो वो कुछ क्यो नहीं बोलते ओर वो अपनी पुत्री को अपने साथ क्यो नहीं ले जाते।तब माँ कहती कि उन्होंने अपनी पुत्री को अच्छे संस्कार दिये और बड़ों का आदर छोटो से प्यार व किसी काम से जी चुराना नहीं सिखाया।ओर उन्हें यकीन है कि उनकी बेटी कभी ना पति का अपमान करेगी ना ही साथ छोड़ेगी।ओर ससुराल में भी सबका मान रखेगी।ओर ऐसा ही सीता जी ने किया।तो भला मै कैसे मेरे पति को छोड़ू।हो सकता है ये मेरे पिछले जन्म के कर्म हो इसलिए इस जन्म में मैं अपने कर्मों को सबकी सेवा कर के ओर सभी का अच्छा कर के सुधार रही हूं ताकि अगला जन्म कुछ भी हो।इस दुनिया से जाते समय घर में रहे सब लोग कहे कि सच में बहुत अच्छे कर्म किये।और जब साथ शादी की तो पूरी ज़िंदगी साथ दूँगी अब तो अंजली की ये बाते सुन कर उसको देख बहुत ख़ुशी हुई कि आज भी ऐसे संस्कार दुनिया में बचे है।
जहाँ ससुराल को घर मान के प्यार की डोर से बहु बांधती हैं।जो उसे तोडने मे नहीं जोडने मे विश्वास रखती हैं।

Saturday, 30 May 2020

फिर भी पढ़ाई करे

ये लाॅकडाउन हुआ तो क्या ,
स्कूल बंद हुआ तो क्या,
फिर भी पढ़ाई करे ओ साथी
फिर भी पढ़ाई करे ओ साथी।
            ‌ ‌ कभी टी.वी कभी मोबाइल,
             कभी दीक्षा कभी वाट्स अप,
              पर  टिचर से मिले ओ साथी
            उनसे  पढ़ाई करे ओ साथी।
ये मुसिबत कम नहीं है,
कभी विडियो काॅल करे
पर हौसले ना रूकने दे,
फिर भी पढ़ाई करे ओ साथी।
              ‌  सरकार की ये कोशिश
                टिचर के बताए रास्ते
             पर हम तो मिलकर चले ओ साथी
         ‌‌      फिर से पढ़ाई करे ओ साथी।

           ‌‌
                         
                                      ‌‌  ‌

                      ‌‌‌     

Tuesday, 26 May 2020

फितरत

जब मैं पहली बार मेंघा से मिली।मुझे वो बहुत अच्छी लगी।वो बिना किसी की परवाह किए।जो कहना होता सामने वाले को कह देती।ना ये सोचती की उनके मन को कैसा लगेगा। धीरे धीरे मैं उसके साथ रहने लगी।और मैंने एक नई बात समझी‌।कि मेघा उनके साथ बहुत अच्छे से भी रहती थी। मुझे ये दोनों बातें समझ ही नहीं आ रही थी ।कि वो ये सब कैसे कर लेती है। फिर मैं उन लोगों के साथ भी रहने लगी। तो मुझे पता चला कि उसकी इस हरकतों से सब उसे साफ दिल का समझते थे।पर वो तो अपने बारे में सही और अच्छा तथा दूसरे कि छवी बिगाड़ने में लगी रहती थी।वो उन्हीं लोगों की बुराई उनके पिछे से करती रहती थी।ऐसा नहीं बल्कि धीरे-धीरे मैंने जाना कि वो बहुत से लोगों की बुराई करती हैं। कोई ऐसा इंसान नहीं होगा।जिसकी तारीफ वो उसके स्वार्थ के बिना करती हो।और मुंह पर वो उन सब से कभी बहुत अच्छी रहती।और कभी लड़ लेती या ऐसे तिखे शब्दों से बात करती जिससे वो उनसे कितना स्नेह करती हैं। ऐसा ही लगता रहे।और तो और वो हंसी ठिठोली भी कर लेती थी। इतने मैं एक दिन मैंने सोचा जब ये जिनके इतनी करीब हैं ।उनकी बुराई करती भला बुरा कहती हैं और किसी को नहीं छोड़ती । तो वो मुझे क्या छोड़ेगी।और धीरे धीरे मैं उससे दूर हो गई।और जैसा मैंने सोचा वैसा ही करने लगीं। वो मेरी बुराई और अपने को अच्छा बताने में लगी रहती थी।
लेकिन एक बार में मुझे उसे दूर होने पर ये बात समझ में आई कि भविष्य में ऐसे लोगों से दूर रहें।

Tuesday, 19 May 2020

मां के रक्षक

मां के गौरव की रक्षा को,
निज प्राणों की आहुति दूं‌।
             ये कर ना सका मेरा तन तो,
       ‌        फिर इस मां की धरा पर व्यर्थ रहूं।
दुश्मन नित दिन शीश उठाते हैं,
मां के आंचल को छलते हैं।
               मैं पूत्र कहो फिर कैसा हूं,
                 छलनी ना कर दूं दुश्मन को
रण में जाए प्राण अगर,
आतुर ना होना मां मगर
                हर सैनिक पूत्र मां यही कहें
               ‌ तेरी आंचल की रक्षा का कर्तव्य करें
हम रक्षा को तैयार खड़े
तिंरगे में लिपट के देह सजे।
                         

Saturday, 9 May 2020

हमसफर

रिश्तों की परवाज़ यूं उड़ी,
जाकर सीधी हमसफर से जुड़ी।
           पहले पहले बहुत हिचकिचाहट हुई,
            जब तक जान पहचान ना हुई।
धीरे धीरे सफर की शुरुआत हुई,
तब जाकर पंतग दिल के आसमान तक गई।
        ‌‌‌     अब हौले हौले वो दिल में हिलौरें लेती हुई,
               कुछ सांसों की डोर से भी बंधती गई।
हमसफर के आगे सब फिका लगने लगा,
तब रिश्ता मजबूत लगने लगा।
     ‌‌‌         पिया के आने की जब राह देखती,
               तब  तो नजरें भी सवाल करती।
कभी जो उड़ता परिंदा थी,
आज वो किसी के नाम हो गई।
               

Saturday, 2 May 2020

दोस्ती

हर रिश्ते सी पवित्र हैं दोस्ती,
         सागर से भी गहरी हैं दोस्ती।
मां की ममता सी छांव है दोस्ती,
         भाई बहनों के प्यार सी  है दोस्ती।
‌‌कुछ उलझे रिश्तों की सुलझन हैं दोस्ती,
          फंसे मंजर से बाहर निकालती हैं दोस्ती।
कई पुण्यो मिलती है दोस्ती,
            खुदा की रहमत होती हैं दोस्ती।
चंद फासलों से भूली नहीं जाती हैं दोस्ती।
               मुस्कुराहट देने वाली जादू है दोस्ती,
कृष्ण सुदामा सी प्यारी होती हैं दोस्ती।
                    गिले शिकवे मिटाती है दोस्ती,
कहीं नजर ना लगे जाए मेंरे दोस्त को,
                       इसलिए मैं ना बताती हूं दोस्ती।
सबसे छुपाती हूं मैं अपनी दोस्ती,
                दुनिया में कयामत तक सलामत रहें दोस्ती।
             

Thursday, 30 April 2020

भूलें नहीं जाते

भूलें नहीं जाते हैं वो बीते हुए दिन,
अरे खट्टे मीठे बचपन के वो आइसक्रीम वाले दिन।
           गर्मियों की छुट्टियों में कंचे वाले दिन,
            भाग भाग के तोड़ रहे वो कैरी वाले दिन।
स्कूल जाते मस्ती करते किसी की नहीं है सुनते,
बात बात पर खींचा तानी फिर भी मिलते-जुलते।
                 भूलें नहीं जाते हैं वो स्कूल वाले दिन,
               अरे होमवर्क नहीं होता तो बहाने वाले दिन।
भूलें नहीं जाते हैं वो बीते हुए दिन,
कॉलेज जाना  तैयार होना सबसे आगे रहना।
           ‌‌ कैंटीन भी मिस नहीं करना बड़ा है याद आता ‌
   ‌‌‌           मम्मी की डांट है खाना कभी न भूला जाता।
भूलें नहीं जाते सितौलिया वाले दिन,
अरे आंख मिचौली खेल खेल के पकड़ाई वाले दिन।
            ‌‌      भूलें नहीं जाते हैं वो बीते हुए दिन,
        अरे खट्टे मीठे बचपन के वो आइसक्रीम वाले दिन।
 

Wednesday, 29 April 2020

दुःख हर लो

जीवन का एक सार तुम्हीं हो,
मोह माया का पाश तुम्हीं हो।
कर्तव्य पथ की राह तुम्हीं हो।
   ‌‌     तुमसे ही तो चांद सितारे,
‌‌          तुम बीन सारे जन बेसहारे।
            तुम ही तो निश्छल प्रेम हो,
तुमसे ही तो अम्बर वसुधा,
तुम बीन सारे खग भी हारे।
आओ आओ जल्दी आओ,
                अब भगवन ना देर लगाओ।
                 तुमसे ही तो मानव जन्मे,
                ‌‌‌‌‌तुम ना आये तो क्या रहने,
अब पतवार को पार लगा दो,
जल्दी आकर ये दुःख हर लो।
 ‌          

Monday, 27 April 2020

फेस दिखाएंगे दौबारा

लाईफ इज नो श्योर,
पर आइ एम कम्पलिट श्योर।
   ‌     ये वक्त ना रहा तो मिलेंगे दौबारा,
        हाथ मिलाए ना मिलाए फेस दिखाएंगे दौबारा।
हम तैयार होकर कुछ इस कदर,
घर से निकलेगे‌ होकर‌ बेखबर।
        मेकअप लगाए ना लगाएं फेस पर,
         मास्क लगाएंगे हमेंशा फेस पर।
तुम फिर पहचानो या ना पहचानो हमें,
हम सड़कों पर बेफ्रिकरी से‌ चलेंगे।
  ‌‌      भीड़ में जाए ना जाए अगर,
         एकांत में भी ना‌ रहेगे मगर।
ये दूरियां कुछ फांसलो में होगी,
पर लाईफ तो सिक्योर होगी।
            लाईफ इज नो श्योर,
              पर आइ एम कम्पलिट श्योर।
ये वक्त ना रहा तो मिलेंगे दौबारा,
हाथ मिलाए ना मिलाए फेस दिखाएंगे दौबारा।
          

Sunday, 26 April 2020

अक्षय तृतीया पावन पर्व

अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया,
हर साल हमने बड़ी धूमधाम से मनाया।
         कहीं पंडितों ने वैदिया सजाये,
           कहीं दुल्हे अपनी दुल्हन को लाये।
 कहीं लड्डू, ग़ुलाब जामुन और श्रीखंड बनाए,
कहीं सजधज कर खूब जीमण जाए।
            इस दिन का माहौल पूरे जश्न से मनाया,
‌ ‌             खूब ढोल, पटाखे और बाजे बजाये।
ये सब हमें आज बड़ा याद आया,
हर साल हमने बड़ी धूमधाम से मनाया।
          उदास ना होना जिनका मिलन आज ना हो पाया,
        ‌       ये पर्व अगले साल पुनः आने वाला।
फिर गुंजेगी शहनाई की गूंजे,
ये विश्वास हम सब ने दिलाया।
             अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया,
              हर साल हमने बड़ी धूमधाम से मनाया।
         
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Saturday, 25 April 2020

सतयुग का शुभारंभ

कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।

              ना किसी से गिले शिकवे रहे हैं,
                 ना कोई भाग दौड़ नजर आती हैं।
चैन से बैठे हैं घरों में अपने,
हर वक्त नाम जपने में रहते हैं।
                  भूल गए थे शायद पैसों के
  ‌‌                अलावा भी बहुत अरमान है।
आज वो अरमान पूरे नजर आते हैं,
अब ये जिंदगी ढलान पर है।
                   शायद इसलिए बेख़ौफ़ नजर आते हैं
                  कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
               सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
       

Friday, 24 April 2020

चांद के जैसे दीदार

चांद के जैसे अब उनके दीदार हो गए,
इस कदर वो हमसे निसार हो गए।
          लौट कर आए घर वापस तब तक,
                वो हमारे मेहमान हो गए।
हम कवारनटाइन क्या हुवे ,
उनके हाथ पीले हो गए।
                 चांद के जैसे अब उनके दीदार हो गए,
                 इस कदर वो हमसे रुखसार हो गए।
जो कभी एक पल नहीं रहा करते थे,
आज वो पूरे  बे ईमान हो गए।

Sunday, 12 April 2020

जंग-ए-कोरोना

लक्ष्मण रेखा तू पार न कर,
इंसानियत पर ये एहसान कर।
बिन वर्दी के तू फौजी हैं,
ये सोच के नियम पालन कर।
              हम अगर ये जंग जीत जाते,
               महामारी से फिर उभर जाये।
               जीवन पटरी पर आ जाये,
    ‌         जो वक्त़ मुश्किल ये गुजर जाये।
ये हिन्दू-मुसिलम वक्त नहीं,
मिल कदम उठाए सख्त सही।
जंग में मिसाल हम बन जाये,
जो जंग-ए-कोरोना जीत जाये।
                मुमकिन है दिक्कत बढ़ जाये,
                 ना मुमकिन कोई काम नहीं।
                 ये सोच कर जो बैठ गए,
                  सारी मुश्किल ही मिट जाते
                  हम जंग-ए-कोरोना जीत जाते।
                 
                   कवयित्री-हेमलता पुरोहित
                     


Wednesday, 8 April 2020

याद

आज फिर मां याद आई,
वैसे तो भूली नहीं गई।
क्यों जब भी मुसिबत आई,
हरदम तुम याद आई।
               कुछ ना होने पर भी तुम,
                मैं दुर हूं ये सोचकर ही तुम,
                हरपल घबराती थी तुम,
              छुट्टी लगते ही पास बुलाती थी तुम
आज फिर मां याद आई,
वैसे तो भूली नहीं गई।
अब मन नहीं करता मेरा,
उस शहर फिर जाने को,
पता है मां अगर आज तुम होती
तो फिर मेरी फिकर में डूबी होती।
                               आज फिर मां याद आई,
                                वैसे तो भूली नहीं गई।
                               क्या अब मन नहीं करता तेरा,
                              दूर से  पास बुलाने को
   ‌‌‌                           सबसे पहले तुम ये ही कहती,
                        ‌    जो भी होगा सब छोड़ के आजा ।
    आज फिर मां याद आई,
वैसे तो भूली नहीं गई। 
ये फिकर आज बड़ी याद आई,
तेरे जाने से किसी ने नही जताई।😢              

Monday, 6 April 2020

कर्म की पूजा

बात उन दिनों की है।जब मै किसी गाँव मे रहती थी।मेरे घर के पास जो घर था। वहाँ एक माँ अपने कहीं बच्चो के साथ रहती थी।उनके जीवन के बारे में सुन के लगा कि उन्होंने अपने जीवन मे बहुत दुःख देख कर बच्चों को बड़ा किया।पर अपने बच्चो को शिक्षा अच्छी दी थी। उस माँ के 11 बच्चे थे। 7 लडकिया ओर 4 लड़के थे।सब बड़े अच्छे से एक छोटे से घर मे रहते थे।माँ और बाप दोनो ने बहुत मेहनत कर उनको पढ़ाया।कुछ पढ़े कुछ ना पढे।लेकिन काम मे सब एक से बढ़ कर एक थे।
धीरे धीरे सब बड़े हो गये।लेकिन साथ मे उस माँ को भी बीमारी हो गई।बीमारी से माँ हमेशा सिर्फ अपने बच्चो के बारे में सोचती।लड़कियों की शादी कर दी।जैसे भी कर के उसके लड़के भी बहुत समझदार थे।उन्होंने दुख की घड़ी में मेहनत कर कर के अपने भाई बहनों का ध्यान रखा।
   उनके इस तरह की मेहनत को पूरा गांव देखता था।वो बच्चे और माँ घर के काम के अलावा दुसरा काम भी दिन भर करते थे।जिससे गाँव मे उनकी बहुत इज्जत थी।और सब उनके मेहनत के कारण उनसे प्यार करते थे।बच्चे चाहे गरीबी के दिन देखे ।पर कोई गलत आदत या काम चोर ना होने से सबके प्रिय थे।कभी किसी दूसरे को भी किसी काम के लिए मना नहीं करते थे।और अपने घर से कही दूर दूर से लडकिया पानी भरती थी।
ओर तो ओर लडकिया माँ की तबियत ज्यादा खराब होने पर पूरे घर का काम अकेली ही कर लेती थी।उसके साथ बहुत अच्छे से पढ़ कर अपने माँ बाप का नाम भी रोशन किया।ओर बाहर के भी कही काम लड़को के जैसे किया करती थी।दुसरो के घर मेहंदी तो बच्चो को पढ़ाना ओर कही अनेक काम करती थी।जिससे पूरा गांव उनको जानता था।लेकिन कभी उन्होंने कोई ऐसा काम नही किया ।जिससे उनके माँ बाप का नाम नीचे हो।लड़के भी इसी तरह कही काम करते और पैसो को माँ बाप को देकर घर चलाने में सहयोग करते थे।
            उन बच्चो की मेहनत ईमानदारी और काम के कारण वो पूरे गाँव के ओर घर मे सब के प्रिय थे।
          ना लडकिया घर के काम के लिए आलसी या पीछे थी।जिस के कारण लड़कियों की शादी होने पर भी उन्हें अपने ससुराल में कभी किसी बात की परेशानी नही हुई।और जीवन की गंभीर समस्याओं को लड़कियों ने बहुत समझदारी से सामना किया।और ससुराल में उनको बहुत इज्जत ओर सम्मान मिला।अपने कर्मो के ओर मेहनत के कारण  ही वो एक अच्छी जिंदगियो का गुजारा कर रही है।
            औरत यदि आराम प्रिय है ।तो कभी वो अपनी तथा अपने पति की उन्नति नहीं कर सकती है।तथा उसका वैवाहिक जीवन भी कहीं लम्बे समय तक अच्छा नही चलता है।कभी ना कभी उसकी कमियां नजर आने लगती है। और तब रास्ते अलग होने के सिवा कुछ नही बचता है।
     क्योंकि जीवन मे सभी जगह आप के रूप से ज्यादा आप के गुणों की पूजा होती है।और कुछ समय के लिए आपको आपका जीवन साथी कुछ नही बोलेगा।लेकिन जिसने हमेशा मेहनत करी ओर मेहनत करते हुवे अपने घर को इतने बच्चो के साथ सम्भालते हुवे अपनी माँ और बहनों को देखा।वो जिस दिन बोला उस दिन आप के पास कुछ नहीं बचे गा।
       वैसे भी लड़की हो या लड़का जो काम करते है। वो ही सबके प्रिय होते है।क्योंकि श्री कृष्ण भगवान स्वयं गीता जी मे कर्म करने के लिए कहते है।
  ओर मानव को तो काम करना ही पड़ता है।जिस तरह हम सोते है,उठते है,साँस लेते है,बैठे रहते है,वैसे ही काम करना होता है।और जो जितना काम करता है।वो उतना ही सबका प्रिय होता है।
   बच्चो,सिर्फ अच्छे कपड़े पहने ओर अच्छे से तैयार होंने या बातो को करने से ही आप सब के प्रिय नहीं हो सकते है।आपको अपने अंदर की आलसीपन को छोड़ना होगा।तभी आपका जीवन अच्छा गुजरेगा।
क्योकि रूप के लिए थोड़े दिन तक लोग आपकी तारीफ करेगे।फिर वो काम देखेगे।इसलिए हमेशा अपने घर के काम को आगे से आगे करे।ये कभी इंतजार ना करे।कि कोई कहेगा।तब आप काम को करेगे।
   ओर सारा काम अपनी पसंद ओर अगर सिर्फ अपने बारे में सोचना इससे तो आप ओर भी दूसरों  की नजरों में खुद गर्ज हो जाओ गे।ओर जीवन के एक मोड़ पर आपके पास कुछ नही बचेगा।
इसलिए अपने से ज्यादा दुसरो के बारे में सोचने वाला उनकी पसंद का ध्यान रखने वाला ही जीवन मे दुसरो के लिए महत्वपूर्ण होता है।और भगवान भी उसी के साथ होते है।
 मेेरी इस कहानी का प्रकाशन इन्दौर उज्जैन के विनय उजाला पेेपर मेें हुआ।

Saturday, 4 April 2020

आओ दिप जलाये

आओ मिल संकल्प करें हम,         
देश हित ये काम करे हम।
           पर समय का भी ध्यान धरे हम,
           5 अप्रैल को भूल ना हम।
मिलकर के सब दिप जलाये,
9 बजे को भूल ना जाये।
            लाइट चालू कहीं रह ना जाये
               अंधियारा करके डिपो से
जगमग ज्योत जलाये,
9 मिनट तक पूरा करे
               एक साथ कामना करें हम,
                 विश्व विजय हो हमारा भारत,
कोरोना को दूर करो तुम,
ईश वंदना करे ये सब हम।         
                   आओ मिल संकल्प करें हम,
                    देश हित ये काम करे हम।
मिलकर दिप जलाये हम।

Friday, 3 April 2020

कोरोना नहीं होता

जैसे हर चमकती चीज का ,
  मतलब सोना नहीं होता।
वैसे हर एक छिक का  ,
मतलब कोरोना नही होता।
                 केवल पानी से हाथ धोना,
                    हाथ धोना नही होता।
               20 सेकंड साबुन से हाथ धोना,
                    जिससे  कोरोना नहीं होता।
ऐसे खतरनाक वायरस का,
 इलाज जादु टोना नही होता।
सावधानी,साफ सफाई रखने ,
   पर कोरोना नही होता।
                    जागरूकता सावधानी रखने वालों को ,
                             बाद में रोना नही होता।
                    भीड़ भाड़ से दूर रहने वालो को,
                            कभी कोरोना नही होता।
घर से बाहर जाना लोगो से ,
     हाथ मिलाना नही होता
क्योकि नमस्कार करने वालो को,
        कोरोना नही होता।
                        महामारी के इस दौर में,
                         हमे धैर्य खोना नहीं होता।
                     सेनेटाइजर ओर मास्क के प्रयोग से,
                         कोरोना नही होता।
समय रहते सचेत होंगे तो ,
अपनो को खोना नही होता।
रोगी स्वयं आइसोलेट हो जाये तो ,
ओरो को कोरोना नही होता।

Tuesday, 31 March 2020

भारत का झण्डा लहराना है

पावन है मातृभूमी मेरी,
पावन हैं कण- कण इसका,
सदियों से भारत का झण्डा लहराया है।  
इसलिये घर में हमको रहना है।                                                         जो फैली हवा में कोरोना गंदगी,
                  नामों निशा  मिटाये इसका,
                   अपने घरों में ही रुक कर दूर भगाते है।
झुकें ना देगें शीश माँ भारती,
तुझसे प्रण ये हम सबका,
सब तेरे चरणों मे शीश झुकाते है।
हम अपने घरों से बाहर नही निकलते है।                                         स्वतंत्रता के खातिर वीरो ने जान दी,
                     आज हमें अपनी जान बचाना है।
                      बार बार हाथ सेनेटाइजर से धोना है।
पावन है मातृभूमी मेरी,
पावन हैं कण- कण इसका,
विशव में भारत का झण्डा लहराना है।
                       🙏घर में रहोगें तो स्वस्थ रहोगे।
                         बाहर जाओगे तो अपने साथ 
                        परिवार देश को भी डूबाओगे।🙏

Monday, 9 March 2020

होली

होली आई होली आई रंग बिरंगा मौसम लाई,

लाल,गुलाबी नीला पीला सबसे प्यारा है कैसुला।

पूजा तू पिचकारी लाना ,फिर सबको तू खूब नहलाना,
हर्ष भागेगा इधर उधर,तनु भी जायेगी डर।

कार्तिक रंगों से खेलेगा,दक्ष गुबारे फेंकेगा,
तनु का भी देखो कमाल ,मुस्कान पर फेंकेगी गुलाल।

मुस्कान हो गई नीली पीली ,तनु पर हुई लाल पीली,
दोनों दौड़ी गिरी धड़ाम ,मुँह से निकला हाय राम।

केशव ने उड़ाई गुलाल,माधव की भी बदली चाल,
दोनों ने मिल कविता गाई,होली आई होली आई ।

होली के हैं रंग प्यारे,मिलकर खेले देखो सारे,
बैर भाव भूला कर सारे,मिले हम सब भाई चारे से।

                         कवियत्री
                             हेमलता पुरोहित

Saturday, 7 March 2020

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामना

क्यों कहती है ये दुनिया,
         की नारी कमज़ोर है।
अरे आज तो उनके हाथों,
         गगन तक कि डोर है।
रोज नई क़ामयाबी पर,
           अब अपना नाम लिखती है।
 चूड़ी हो हाथो को सोचा,
              वो हथियार उठाती है।
अपनी अस्मत के ख़ातिर वो,
              वो युद्ध तक लड़ने जाती है।
लेकर क़लम हाथों में,
               नया इतिहास बनाती है।
नारी ना कमज़ोर रहीं अब,
                अपना परचम फैलाती है।
पैरों की जूती जो समझे ,
                 भूल वो भारी करते है।
जिसने उनको जन्म दिया,
                   वो भी तो एक नारी है।
कमज़ोर ना समझो नारी को,
                    वो दुर्गा, झाँसी रानी है।

Tuesday, 18 February 2020

विदाई

विदाई ये शब्द अपने आप मे ही कहीं ना कहीं दुख होने का एक अहसास करा देता है। जीवन में मिलना बिछड़ना तो होता ही लेकिन कुछ पल जो हमें जीवन भर याद रहते है। या जो जीवन में एक अजनबी से दोस्त गुरु या अपने बन जाते है।जिनसे बिछड़ के दुख होता है। ऐसा ही कुछ आज महसूस हुवा जब हमें भी एक बार फिर विदाई दी गई। ये एक बार फिर इस लिए कहा मैंने क्योंकि जीवन मे पहले भी कहीं विदाई हुई और उनको भुलाना ही मुश्किल था । कि आज एक ओर विदाई स्कूल से विदाई सबसे पहले दोस्तो गुरू को छोड़ने का दुख हुवा ,तब फिर मायके से विदाई, सभी को छोड़ना पडा ।तब वो घर जिसमें जन्म लेकर कब बड़े हुवे, कुछ पता ही नहीं, माँ का आँचल वो पिता का साया हर मुश्किल राह से बचाता रहा और जिंदगी ने एक विदाई ला दी।कि दुनिया की धूप में सब छोड़ के नया बसेरा बनाने चले ,एक डर से की कुछ गलत ना हो कोई हमसे दुःखी ना हो ।
शा•उ•मा•कनाड़िया से जब फिर एक बार आज विदाई हुई तो आँखों के सामने वो सारी बाते आने लगी । कि मैं जब यहाँ आई तब कितना खुश थी और आज जब  विदाई हो रही तो ऐसा लग रहा था । कि अपने कुछ पीछे छूट रहे थे। पूरा विद्यालय परिवार एक छोटी बच्ची के जैसे बड़े ही अच्छे से रखते थे। ओर कैसे एक साल गुजर गया। पता ही नही चला।  साथ छूटने की कड़ी में कहीं और साथी छूट गए।कही पिता सा मार्गदर्शन तो कही बहनों का प्यार और भाई सा दुलार भी शामिल था  जिन्होंने जीवन के बहुत से ज्ञान भी दिया और सिख भी दी।
आज मन कुछ उदास तो है उन सभी के छूट जाने का वैसे ये विदाई नही हुई थी ।
तब तक इस बात का अहसास नहीं था।पर आज जब हुवा तो एक बार फिर सारी विदाई याद आगयी ।की कैसे एक एक कर के विदाई से सब बिछड़ गए।
               आज फिर वक्त को रोकने का मन करता है
                पीछे  लौटने का   मन  करता  है
                 जो छुटे पिछे वो अनमोल रत्न थे
                 उनको शुक्रिया करने का मन करता है
                 



Thursday, 6 February 2020

माँ

*माँ तुम*..😢
*बहुत याद आ रही हो*
*एक बात बताऊँ*...
*आजकल*...
*तुम मुझमें समाती जा रही हो*☺


*आइने में अक्सर*
*तुम्हारा अक्स उभर आता है*
*और कानों में अतीत की*
*हर एक बात दोहराता है*

*तुम मुझमें हो या मैं तुममें*
*समझ नहीं पाती हूँ*
*पर स्वयं को आज*
*तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ*

*तुम्हारी जिस-जिस बात पर*
*कभी नाराज़ होती थी*
*झगड़ा भी किया करती थी*

*वही सब*..
*अब स्वयं करने लगी हूँ*
*अन्तर केवल इतना है कि*
*तब वक्ता थी और आज*
*श्रोता बन गई हूँ*

*हर पल  राह देखती*
*तुम्हारी आँखें* ....
*आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं*
*तुम्हारे दर्द को*
*आज समझ पाती हूँ*
*जब तुम्हारी ही तरह*
*स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ*


*मन करता है मेरा*.
*फिर से अतीत को लौटाऊँ*
*तुम्हारे पास आकर*
*तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ*
*आज तुम बेटी*
*और मैं माँ बन जाऊँ*

              🙏🏻 *माँ*🙏🏻
                

Saturday, 25 January 2020

तीन रंग तिरंगा प्यारा

लगता सबसे न्यारा न्यारा,
प्यारा भारत देश हमारा,
ऊँचा है सविधान हमारा🇮🇳
             अलग धर्म अलग भाषा है,
              सबकी एक  अभिलाषा है,
               प्यारा भारत देश हमारा,
           🇮🇳   ऊँचा हे संविधान हमारा।
जाति और समुदाय को लेकर,
देश ना बट जाए दोबारा,
 प्यारा भारत देश हमारा,
 ऊँचा हे संविधान हमारा।🇮🇳
               🇮🇳छोड़ दो हिन्दू मुस्लिम नारा,
                सब ओर हो केवल भाई चारा,
                 प्यारा भारत देश हमारा,
                  ऊँचा हे संविधान हमारा।
कमजोर नही सशक्त बनो,
देशवासी नहीं देशभक्त बनो,
प्यारा भारत देश हमारा,
ऊँचा हे संविधान हमारा।🇮🇳
                    कवयित्री  हेमलता पुरोहित
सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना🙏

Thursday, 23 January 2020

दरिंदगी की हद हो गई

एक अकेली अबला पर
कितने गिद्ध टूट पड़े,
दरिंदगी की हद हो गई
अब तो गुस्सा फूट पड़े।

        हर रिश्ते को किया तार तार,
         अपनी भूख मिटाने को,
         ऐसे वेशी घूम ना पाए
          चलो सबक सिखाने को।
नारी नहीं सामान भोग की,
ये जिसने ना सोचा था,
काट फेंक दो हाथ उसकी के,
जिसने उसको नोचा था।
          लटका दो उसको फाँसी पर,
           जिसने अस्मत लूटी थी,
           दे दो न्याय अगर दे सको,
           जिसकी इज्जत लूटी थी।
बदलो परिभाषा न्याय की,
अपना देश बदल जायेगा,
हैवानियत के दरिंदो को,
तभी समझ में आयेगा।
        ऐसी सजा इन्हें दो की
         रूह कांप जाए देखने वालों की
         फिर कोई सोच ना पाय
         इज्जत पर हाथ डालने की।
                      कवयित्री Hemlata Purohit

Monday, 20 January 2020

बेटी की फटकार

आते ही दुनिया मे सनाटा छा गया,
खुशिया ना मिली मुझको मातम सा छा गया।
                      होते ही मेरी माँ ने भी आँखे फेर ली,
                      बेटे की थी आस उसको नजरें तरेर ली।
जो आया मिलने माँ, से दिलासा दे गया,
देख मेरी ओर,माँ को निराशा दे गया।
                     क्या इतना बुरा था मेरा दुनिया में आना,
               जितना बुरा न था किसीका दुनिया से जाना।
कमजोर ना बन माँ,तू मुझमें समा गई,
मै बनके तेरी ताकत दुनिया में आ गई।
                     बेटे से बढ़कर  मै तेरा अभिमान रखूंगी,
                  ख़ुद से भी बढ़कर मैं तेरा सम्मान रखूंगी।
ना हो निराश देख मेरी ओर प्यार से,
क्यो शोक में डूबी,लगा सीने से प्यार से।
                   ना सोचा मैंने  कि तू इतना खेद करेंगी,
                   दुनिया की तरह तू भी भेद करेंगी।
भगवान का है रूप तू मुझको स्वीकार कर,
नारी है तू भी सोच कर मुझे अंगीकार कर।
                         
                           कवयित्री
                    हेमलता पुरोहित

Thursday, 9 January 2020

पैसे की महिमा

मुझको लगता इस दुनिया में, एक अचम्बा ऐसा हैं।
रिश्ते-नाते सभी झूठ हैं, सच्चा केवल पैसा है।।

पैसे के दम पर इठलाये,हर कोई नर और नारी।
संभल के भैया बात करो,तुम पैसा सब पर भारी।।

भारी भरकम पैसे वाला,दिखता सबसे अलग है।
उसके नखरे चलते-फिरते ,देखे जग में लोग है।।

जग में केवल चलता हैं, उनके नाम का सिक्का।
जिसके पत्तों में होता हैं, चिड़ी पान का इक्का।।

इक्के से फिर याद आ गया,खेल हमे भी अपना।
मालामाल होने के लिए,चलो सोकर देखे सपना।।

सपने में भैया तुम तो ,बस राम-राम ही जपना।
 समझो तुम तो अब, पराया माल भी अपना।।

अपना- पराया छोड़ दे बंदे,छोड़ दे तेरा- मेरा।
रिश्तों से नाता जोड़,पैसा मेल हैं हाथ का तेरा।।

तेरा पैसा एक दिन तुझको इस रंग दिखायेगा।
माल खायेगे वो सब ओर,तू सुखी रोटी नहीं खाएगा।।

                                   
                                      कवयित्री
               हेमलता पुरोहित



बेटी दिवस की शुभकामनाएं

 नही पढी लिखी थी मां मेरी ना उसने कभी ये बधाई दी बेटी होने पर मेरे भी ना उसने जग मे मिठाई दी हो सकता समय पुराना था मोबाइल ना उसके हाथो मे था...