कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
ना किसी से गिले शिकवे रहे हैं,
ना कोई भाग दौड़ नजर आती हैं।
चैन से बैठे हैं घरों में अपने,
हर वक्त नाम जपने में रहते हैं।
भूल गए थे शायद पैसों के
अलावा भी बहुत अरमान है।
आज वो अरमान पूरे नजर आते हैं,
अब ये जिंदगी ढलान पर है।
शायद इसलिए बेख़ौफ़ नजर आते हैं
कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
ना किसी से गिले शिकवे रहे हैं,
ना कोई भाग दौड़ नजर आती हैं।
चैन से बैठे हैं घरों में अपने,
हर वक्त नाम जपने में रहते हैं।
भूल गए थे शायद पैसों के
अलावा भी बहुत अरमान है।
आज वो अरमान पूरे नजर आते हैं,
अब ये जिंदगी ढलान पर है।
शायद इसलिए बेख़ौफ़ नजर आते हैं
कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
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