Saturday, 25 April 2020

सतयुग का शुभारंभ

कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।

              ना किसी से गिले शिकवे रहे हैं,
                 ना कोई भाग दौड़ नजर आती हैं।
चैन से बैठे हैं घरों में अपने,
हर वक्त नाम जपने में रहते हैं।
                  भूल गए थे शायद पैसों के
  ‌‌                अलावा भी बहुत अरमान है।
आज वो अरमान पूरे नजर आते हैं,
अब ये जिंदगी ढलान पर है।
                   शायद इसलिए बेख़ौफ़ नजर आते हैं
                  कलयुग का अंत हुआ लगता हैं,
               सतयुग का शुभारंभ नजर आता है।
       

No comments:

Post a Comment

बेटी दिवस की शुभकामनाएं

 नही पढी लिखी थी मां मेरी ना उसने कभी ये बधाई दी बेटी होने पर मेरे भी ना उसने जग मे मिठाई दी हो सकता समय पुराना था मोबाइल ना उसके हाथो मे था...