Tuesday, 15 September 2020

कन्यादान


कई जन्म के पुण्य हमारे, जब संचित हो जाते हैं।

तब पुत्री के रूप में कोई, कन्या को हम पाते हैं।।

सहज नही होती है कन्या, करुणा की अवतारी है।

शक्ति स्वरूपा प्रेम प्रतीता, वो तो तारणहारी है।।

इस हेतु जरूरी है कन्या का, मान और सम्मान करें।

भाग्य और सौभाग्य हमारा, इसपर हम अभिमान करें।।

नेह स्नेह से पालन पोषण, उसका लाड़ दुलार करो।

खुद से ज्यादा तनया को ही, जी भरकर तुम प्यार करो।।

किन्तु कहो क्या शुभ की बेला, सदा सनातन होती है।

कालचक्र में कभी कभी तो, बेबस आँखें रोती हैं।।

यूँ ही लाडो आखिर इक दिन, अपने घर तो जाएगी।

और वहाँ भी नेह स्नेह का, डंका खूब बजाएगी।

आओ उसके विदा पर्व का, अंतस से संज्ञान करें।

*तीन लोक में सबसे दुर्लभ, आओ कन्यादान करें।।


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