जीवन के रंगमंच के सब भांति भांति किरदार
नहीं किसी का आपस में मिलता-जुलता अंदाज
सब सोचे मैं ही हूं दुनिया का दावेदार
भूल जाते परम सत्य की ये तो रैन बसेरा
क्या जाने कब उड़ जाए अच्छा रोल निभाए
छाप अमिट छप जाए जंग में कुछ ऐसा कर जाए
सत्य, अहिंसा,पुण्य की बातें भी सुनने मिल जाए
इन राहों पर चलना कहां अब सब को भा जाए
लोभ,मोह,लालच में गिरा मनुज कहां उठ पाए
निन्यानवे के फेर में दिन रात वो डूबा जाए
इस के खातिर ना जाने कितने कुकर्म कर जाए
किन्तु सत्य रंगमंच का याद वो ना रख पाए
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