Tuesday, 26 May 2020

फितरत

जब मैं पहली बार मेंघा से मिली।मुझे वो बहुत अच्छी लगी।वो बिना किसी की परवाह किए।जो कहना होता सामने वाले को कह देती।ना ये सोचती की उनके मन को कैसा लगेगा। धीरे धीरे मैं उसके साथ रहने लगी।और मैंने एक नई बात समझी‌।कि मेघा उनके साथ बहुत अच्छे से भी रहती थी। मुझे ये दोनों बातें समझ ही नहीं आ रही थी ।कि वो ये सब कैसे कर लेती है। फिर मैं उन लोगों के साथ भी रहने लगी। तो मुझे पता चला कि उसकी इस हरकतों से सब उसे साफ दिल का समझते थे।पर वो तो अपने बारे में सही और अच्छा तथा दूसरे कि छवी बिगाड़ने में लगी रहती थी।वो उन्हीं लोगों की बुराई उनके पिछे से करती रहती थी।ऐसा नहीं बल्कि धीरे-धीरे मैंने जाना कि वो बहुत से लोगों की बुराई करती हैं। कोई ऐसा इंसान नहीं होगा।जिसकी तारीफ वो उसके स्वार्थ के बिना करती हो।और मुंह पर वो उन सब से कभी बहुत अच्छी रहती।और कभी लड़ लेती या ऐसे तिखे शब्दों से बात करती जिससे वो उनसे कितना स्नेह करती हैं। ऐसा ही लगता रहे।और तो और वो हंसी ठिठोली भी कर लेती थी। इतने मैं एक दिन मैंने सोचा जब ये जिनके इतनी करीब हैं ।उनकी बुराई करती भला बुरा कहती हैं और किसी को नहीं छोड़ती । तो वो मुझे क्या छोड़ेगी।और धीरे धीरे मैं उससे दूर हो गई।और जैसा मैंने सोचा वैसा ही करने लगीं। वो मेरी बुराई और अपने को अच्छा बताने में लगी रहती थी।
लेकिन एक बार में मुझे उसे दूर होने पर ये बात समझ में आई कि भविष्य में ऐसे लोगों से दूर रहें।

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