जाड़े की रात सुहानी हैं,
जाड़े की बात सुहानी हैं,
सच पूछो तो मुझको,
ये सब ऋतुओ की रानी हैं।
सुशोभित होते लोग सभी,
गरम ऊनी मुकूट पहने,
शाल दुशाले और मफ़लर,
सर्दी की वर्दी पहनें।
गरमागर्म चाय कहीं,
तो अलाव तापते हाथ कहीं,
धुंवा धुंवा हो जाता तन,
जब बढ़ जाती है ठिठुरन।
ओस की बूंदें पत्तों पर,
गिरकर इतना इतराती हैं,
सर्दी में बढ़ते हैं तेवर,
मावट का जल बरसाती हैं।
घने कोहरे की ओट से,
खिलखिलाती हैं धूप कभी,
ऐसा लगता हैं मानो,
सर्दी भी दिखाती हैं रूप कभी।।
कवियत्री
हेमलता पुरोहित
जाड़े की बात सुहानी हैं,
सच पूछो तो मुझको,
ये सब ऋतुओ की रानी हैं।
सुशोभित होते लोग सभी,
गरम ऊनी मुकूट पहने,
शाल दुशाले और मफ़लर,
सर्दी की वर्दी पहनें।
गरमागर्म चाय कहीं,
तो अलाव तापते हाथ कहीं,
धुंवा धुंवा हो जाता तन,
जब बढ़ जाती है ठिठुरन।
ओस की बूंदें पत्तों पर,
गिरकर इतना इतराती हैं,
सर्दी में बढ़ते हैं तेवर,
मावट का जल बरसाती हैं।
घने कोहरे की ओट से,
खिलखिलाती हैं धूप कभी,
ऐसा लगता हैं मानो,
सर्दी भी दिखाती हैं रूप कभी।।
कवियत्री
हेमलता पुरोहित
काहे तू ठंड - ठंड ठंड करे
ReplyDeleteठंड तो अपनी जान बचाय औरन का तो पता नहीं पर
अपने काम बहुत ये आय , पता जरा न किसी को चलता एक महीना जो न नहाय झंझट न होय पसीने की न सूरज ही है मुंह झुलसाय ,
Nice
Delete