Tuesday, 8 October 2019

बेटी दिवस

जब सोचती हूँ बैठ के बेटी क्या है?
तब बात एक ही आती है दिल मे ,
कड़ी धूप में छाँव सी होती है |
माँ के बाद दूसरी माँ बन जाती है,
अश्क आँखों मे भरकर भी मुस्कुराती है|
इनके बिना सुनी होती हैं बगिया ,
इनसे ही रोशन होती हैं दुनिया ,
खुदा की इस धरती पर इनायत है बेटियां|
फिर भी कहते हैं लोग की,
बेटो सी नही होती है बेटिया|
कही घरो में बेटे की आस में ,
आज भी पिसती है बेटिया |
कोख़ में आज भी मारी जाती है बेटिया|
बदलते परिवेश में हिफाजत नही है बेटिया
सहते हुवे दर्द और मुश्किल को भी
मुस्कुराती है बेटिया|
अपनो के लिए कई गम सहती है बेटिया
ना जाने क्यों फिर भी मारी जाती है बेटिया|

4 comments:

बेटी दिवस की शुभकामनाएं

 नही पढी लिखी थी मां मेरी ना उसने कभी ये बधाई दी बेटी होने पर मेरे भी ना उसने जग मे मिठाई दी हो सकता समय पुराना था मोबाइल ना उसके हाथो मे था...