Saturday, 30 December 2017

जाने क्या सोचती रहती हूं आजकल
एक उदेर्ड बुंन्न मे लगी रहती हूं आजकल
सफऱ को रफ्तार देने की सोचती हूं फिर 
कोई और सोच में डूब जाती हु आजकल
बिन परिदों के पर लगे है सोच में 
जाने क्या सोचती रहती हूं आजकल 
हकीकत को खवाबो से जोड़ती हु आजकल 
कुछ नया करने की सोचती हूं आजकल 
पर बेड़िया पैरो में लगी 

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