Tuesday, 19 May 2020

मां के रक्षक

मां के गौरव की रक्षा को,
निज प्राणों की आहुति दूं‌।
             ये कर ना सका मेरा तन तो,
       ‌        फिर इस मां की धरा पर व्यर्थ रहूं।
दुश्मन नित दिन शीश उठाते हैं,
मां के आंचल को छलते हैं।
               मैं पूत्र कहो फिर कैसा हूं,
                 छलनी ना कर दूं दुश्मन को
रण में जाए प्राण अगर,
आतुर ना होना मां मगर
                हर सैनिक पूत्र मां यही कहें
               ‌ तेरी आंचल की रक्षा का कर्तव्य करें
हम रक्षा को तैयार खड़े
तिंरगे में लिपट के देह सजे।
                         

1 comment:

  1. खुशनसीब हैं वो जो वतन पर मिट जाते हैं,

    मरकर भी वो लोग अमर हो जाते हैं,

    करता हूँ उन्हें सलाम ए वतन पे मिटने वालों,

    तुम्हारी हर साँस में तिरंगे का नसीब बसता है

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