मां सी होती है मौसी
ममता की मूरत जैसी
परछाई भी बिल्कुल वैसी
शीतल छाया मां के जैसी
हमसे लाड लड़ाती इतना
आंचल में छुपाती उतना
नजर कहीं लग जाए ना
पल-पल बलाई लेती उतना
ठेस कहीं लग जाए हमको
मन को यह भाता ना उसको
व्याकुल सी हो जाती वह भी
और ज्यादा ज्यादा प्यार लुटाती
जल्दी जल्दी ठीक हो जाए
ईश्वर से वह प्रार्थना करती
कदम छू ले ऊंचाइयों के हम
वह नित नित ये प्रार्थना करती
मौसी मां की परछाई जैसी होती है ममता की मूरत होती है यह पवित्र रिश्ता आपकी यह कविता मन को छू जाती है अति सुंदर
ReplyDeleteVery nice dear... God bless you always
ReplyDeleteTxs
DeleteBahut sunder rachna mam ..
ReplyDeleteTxs
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