Wednesday, 6 March 2019

मृत्युभोज

हर समाज को एक नई पहल करने की जरूरत है|पुनः समाज की प्रगति देश के विकास के लिए ये कदम उठाना जरूरी है वैसे हमारे समाज और देश के लोगो ने बहुत सी जो पहले रीतियां थी उनको कुरीतिया साबित कर उनको बंद किया जिसके के लिए पूरा देश और सारे समाज दिल से उनके आभारी रहेगे लेकिन अब कई सालों न
बाद हमे एक रीत के बारे में पुनः विचार करना होंगा क्यो की वर्तमान समय मे सभी शिक्षित है तो विरोध करना हमे शोभा नही देता हम सिर्फ अपने विचारों को आपके सामने रख सकते है आपको बस ये सोचना है कि क्या ये विचार सही है तो नीचे हा जरूर लिखे 
मेरा माना है कि पूरे देश और कई समाज मे 80℅लोगो के आजीवका का साधन मजबूत नही है जिनमे से बहुत सी जनसँख्या गाँवो की है क्यो की गाँवो तो देश की आत्मा है लेकिन कुछ रीते ऐसी होती है जो प
पूरी तरह सक्षम ना होते हुवे भी उन्हें निभानी पड़ती है 
वो इसलिए कि समाज रिश्तेदारों में सब लोग करते है तो हमे भी करना होगा क्यो की विरोध करने की वो हिम्म्मत नही जुटा पाते उनकी मज़बूरीरो से उनको ऐसा लगता है कि उनको दब के रहना है कुछ बोलना नही या जो जैसा होता आरहा वैसा ही होता रहेगा कुछ बदलाव वो चाह कर भी नही कर सकते क्यो की उनके द्वारा किया बदलाव लोग गलत समझेगे क्यो की वो समाज मे पूरी तरह जो लोग सक्षम है वो इसको इतना बड़ा देते है कि गरीब को तो बिचारे को पिसना ही पड़ता है मै तो सिर्फ आपको इस बात पर विचार करने को बोल रही हूँ कि अहम सबको किसी के लिए कुछ करना है तो उसके जीवित रहते करे ना जो सेवा जो कुछ ख़ुशी जो कुछ देना है उसके दिल को खुश रखे उसको किसी तरह से दुखी ना करे जब ये सब हमने अच्छे से किया तो फिर उसके जाने के बाद उसके नाम का किसी को खिलाने वे देने की जरूरत किसी को देने की ना होगी ये फिर भी बाद में हम ये करते है तो शायद हमनें उसके जिंदा होने पर उसके लिए कुछ नही किया इसलिए अब पीछे कर रहे है ये एक विज्ञान कहता है हमारे ग्रंथ कहते है और खुद गीता जी मे कृष्ण भगवान कहते है कि आत्मा तो जैसे हमारे कपड़े फटने पर हम नए पहनते है वैसे ही आत्मा भी सिर्फ शरीर बदलती है वो तो अजर अमर है फिर हम क्यो ये सब करते है 
जो उसके पीछे लोग उसके परिवार के बचे है उनको सहानुभूति के रूप में समाज के वरिष्ठ लोगो को ही समझाना होगा कि अब सिर्फ आप 11 पंडित का कायक्रम कर जाने वालों के प्रति आदर करे बस ये सब तभी मुमकिन होगा जब समाज के जो पूरी तरह से सक्षम है वो लोग सब से पहले ये कदम उठाए ये कदम आज बहुत से शहरो में लोगो ने उठाया है और शुरआत समाज के वरिष्ठ लोगो से हुई कई जगह तो युवा पीढी ने इसका जिम्मा उठाया और उन्होंने 
 मृत्युभोज को पूरी तरह बंद कर कड़ी आवाज उठाई है काननू ने भी जब इसको बंद करने के लिए जब कदम उठाया तो हम सब मिलकर उसमे सहयोग क्योनी करते में आप सभी से ये ही अनुरोध करुँगी की आप सब किसी भी गरीब या इंसान को समाज मे नीचे ना देखना पडे हम सब मिलकर इसको बहुत ही सीमित या बंद करने के लिए एक झूट होना पड़े गा
अब जब मैने ऐसा अनुरोध किया तब बहुत से लोग ये बोलबोलेगे की हम शादियों में जब इतना पैसा खर्च करते है अपने लिए तो क्या मृत्यु पर अपना जो भी है दादा दादी माँ उनके लिए खर्च नही कर सकते तो ये आपजो पुनः बता दुकी हमे शादी में ख़ुशी होती तो उसको जाहिर करने के लिए करते है तो क्या उस समय भी हमे उतनी ही खुशी है 
के
कुछ लोगो पितृ ऋण मातृ ऋण के बारे में बोलेगे की उसको चुकाने के लिए करना होता है तो में फिर वही बात बोलूंगी की ये ऋण आपको उनके जीवित अवस्था मे उनकी सारी जरूरतों को पूरा कर के चुकाना होता है उनकी सेवा कर के ना कि उनके जाने के बाद लोगो को खिला के बस मेने अपने विचार आप लोगो के समक्ष रख दिये है
ओर शादी में भी जरूरी नही की आप लोगो की तरह करने के लिये अपने ऊपर कर्ज ले नही बल्कि इन फ़ालतू ख़र्च से बढ़िया की आप सब आज कल सम्मलेन समाज ने ये एक बहुत अच्छा कदम उठाया है या सिर्फ मंदिर कोट ओर भी सीधे उपाय है जहाँ ओर भी आसान है और जो पैसा बचे उसे अपने परिवार की उन्नति में काम ले उनके विकास के बारे में सोचे 
ओर जब ज्यादा होतो किसी अनाथालय की गरीब की मदद करे पर फालतू के कामो में ना लगाए बस एक विनती🙏क्यो की जब बहुत मेहनत से कमाते है तो उसकी महत्व को हमको समझना होगा,,🙏🙏🙏🙏

12 comments:

  1. Txs 💐 🌹 AAP k vichar par vichar Kiya jaate gaa

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  2. bahot sahi vichar h di me sahmat hu ye vichar se

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  3. Ager AAP sahmat hai to or bhi logo to use pahuchaye taki log Apne vicharo Ko badle sake or samaj Desh ki unti me ek Naya kadam uttaye

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  4. कुछ हद से सही है कुछ हद तक गलत

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  5. आए खाने तेरहवी पंडित जी हर्षाय।
    नहीं अकेले संग में बारह और लिवाय।।
    बारह और लिवाय पूडि़याँ ढँ से धमकी।
    उन्हें नही परवाह कछू उस घर के गम की।।
    दान दक्षिणा पाकर पंडि़त फूले नही समाए।
    कहते हुए गए कि भगवन रोज यही दिन आये।।
    भारतीय समुझाय सुनो हे अंध्विश्वासी भैया।
    दल्लालों के कहने पर क्यों खर्चा करत रूपैयां।
    फिर भी करना पड़ता है

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