Thursday, 23 January 2020

दरिंदगी की हद हो गई

एक अकेली अबला पर
कितने गिद्ध टूट पड़े,
दरिंदगी की हद हो गई
अब तो गुस्सा फूट पड़े।

        हर रिश्ते को किया तार तार,
         अपनी भूख मिटाने को,
         ऐसे वेशी घूम ना पाए
          चलो सबक सिखाने को।
नारी नहीं सामान भोग की,
ये जिसने ना सोचा था,
काट फेंक दो हाथ उसकी के,
जिसने उसको नोचा था।
          लटका दो उसको फाँसी पर,
           जिसने अस्मत लूटी थी,
           दे दो न्याय अगर दे सको,
           जिसकी इज्जत लूटी थी।
बदलो परिभाषा न्याय की,
अपना देश बदल जायेगा,
हैवानियत के दरिंदो को,
तभी समझ में आयेगा।
        ऐसी सजा इन्हें दो की
         रूह कांप जाए देखने वालों की
         फिर कोई सोच ना पाय
         इज्जत पर हाथ डालने की।
                      कवयित्री Hemlata Purohit

2 comments:

  1. खामोशी पसरी हुई थी आँखों में ,
    एक कोहरा काजल बिखरा गया ,
    साफ सादे से उसके आँचल पर ,
    रंग कीचड़ का जैसे लगा गया ,
    घनी जुल्फें पकड़कर घसीटा ,
    घोंट दी आवाज उसकी गले में ,
    कुचल अस्मत अपने पैरों तले ,
    झूठी मर्दानगी अपनी जता गया ,
    देखती रही छलनी होता बदन ,
    लुढ़कता हुआ दर्द गालों से होकर ,
    हंसी चाँद पर अचानक ही जैसे ,
    अमावस का साया लहरा गया ,
    घुट रही थी सांसें दबी चीख में ,
    पीड़ा भी चीत्कार कर उठी थी ,
    मरोड़ नाज़ुक कलाइयों पर ,
    बल बाजुओं का जैसे आज़मा गया ,
    इक सवाल ज़हन में कौंधता है ,
    जब सुनती हूँ तेरी रोज़ नई हरकतें ,
    आम औरत तुझे क्यूं न भाई ,
    जिसे फिर इक निर्भया तू बना गया ,
    सुंदरता अभिशाप हो गई या फिर ,
    तेरी हवस भूख से ज्यादा बढ़ गई ,
    मर्द तुझे भी औरत ने ही जना था ,
    फिर कैसी हैवानियत तू दिखा गया !

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