ट्रांसफर एक कैसा शबद है जिसे से
किसी को खुशी तो किसी को दुख होता है
पर जब ये होकर भी नही होता तो
कैसा होता है ये तो वो ही जानता है
जिसका सब कुछ अधर में अटका है
कई सालों से वो जिसकी बाट निहारता है
वो बस होने ही वाला होता है कि तभी
एक जोर से जैसे तूफान सा आकर उसे रोक
देता है आखिर जब ये करना ही नही होता है
तो क्यो जूठी आस बंधाते है क्यो पूरे साल
उसे उसी एक ट्रांसफर के पीछे गुम्माते है
बिचारे वो क्या करे अब जो पूरा मानस ही
बना बैठे थे घर जाने का परिवार को ले गए
कही और अब घर जमाने का कर लिया
बसेरा उनका तो सब कुछ फिर बर्बाद
कर दिया इस रोक ने अब मन कैसे
लगेगा फिर वहां उनका जो छोड़ने की
सोच बैठे थे वो जगह ओर नई जगह की
तरफ रुख कर लिया था गाड़िया लोहार सी
जिंदगी बना दी आज यहाँ कल फिर
वहां कैसे मन को मार के वो अच्छे
से सब कर पायेंग !